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मारे इर्द-गिर्द लाखों घटनाएँ रोज घटती हैं और अगर हम उनको किसी के साथ न बांटें तो ये हमारे अंदर घुटन पैदा करती हैं ,आज मैनें यह सोचा की
क्यों न अपने अंदर पैदा होने बाली इस घुटन को
बाहर निकालूं और कुछ लिखूं ताकि आने बाला कल ये जान सके की सच क्या है ................

शुक्रवार, 28 अगस्त 2015

 
 
“खराशें खूब मजा लेती हैं लहू बहाने का,
बेसब्र होकर इन्तजार करती हैं रिश्तों के टूटने का,
 
और इंसान है की कांच के टुकड़ों को ताउम्र जोड़ता रहता है  
 
यह जानते हुए भी कि यह आइना फिर वैसा नहीं दिखेगा,”
 
प्रदीप सिंह
 
गाँव – औच , डा. लाह्डू, तहसील –जैसिंघ्पुर, जिला – काँगड़ा (हि.प्र.)

 

  

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