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मारे इर्द-गिर्द लाखों घटनाएँ रोज घटती हैं और अगर हम उनको किसी के साथ न बांटें तो ये हमारे अंदर घुटन पैदा करती हैं ,आज मैनें यह सोचा की
क्यों न अपने अंदर पैदा होने बाली इस घुटन को
बाहर निकालूं और कुछ लिखूं ताकि आने बाला कल ये जान सके की सच क्या है ................

शनिवार, 12 सितंबर 2015

शायद सारे मुद्दे सुलझ चुके हैं...........................

हमारे कदम कहाँ चले हैं, रोटी कपडा और मकान, श्याद ये मुद्दे अब सुलझ चुके हैं,
अब घरों में रोटी नहीं बनती, श्याद लोग बाहर खाना पसंद करते हैं,
लगता है गाँव अब शहर बन गए हैं मगर लोग बंद कमरों में क्यूँ घुटने लगे हैं,
शायद इंसान अब बूढा नहीं होता, मगर जवानी ढलने के बाद आखिर  क्यूँ नहीं दिखता,
लगता हैं बच्चे अब समझदार हो गए मगर गली मोहल्ले और मैदान आखिर क्यों सुनसान  हो गए हैं ,
शायद लोग पैदल कम चलने लगे हैं मगर गाड़ी में ही क्यूँ थकने लगे हैं,
लगता है अब पैसे की कोई कमी नहीं है मगर चोरी और मार-काट  आखिर क्यूँ बढ़ गयी है,
शायद अब  रिश्ते अब मजबूत हो गए हैं मगर दिवाली, ईद और क्रिसमस अब फोन पर ही क्यूँ  होने  लगे हैं,
लगता हैं  मुर्दे भी अब ज्यादा भीड़ और शोर पसंद नहीं करते मगर बिना अर्थी उठाए काँधे क्यूँ छीलने लगे  हैं
शायद सारे मुद्दे सुलझ चुके हैं...........................
 
प्रदीप सिंह राणा I
पता:  गांव-ओच, डाकघर-लाहडू, तहसील – जयसिंहपुर, जिला –काँगड़ा, हिमाचल प्रदेश. 8894155669

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