कई मौसमों को बदलते और बरसते देखा है मैंने,
बारिश की बूंदों को पत्तों से गिरकर नदी,नाले और झरनों में बदलते देखा है मैंने,
गिरती हैं न जाने कितनी ही लाशें पेड़ों से हर रोज,
बेजुवान चेहरों को धमाकों से डरते और संभलते देखा है मैने,
न जाने कितनें ही घौंसलों को बनते और बिखरते देखा है मैने,
एक –एक तिनके को चोंच में भरते और सपनों में बदलते देखा है मैने,
अपनों से बिछड़ने का दर्द क्या होता है यह कोई मुझसे पूछे,
कई परिंदों को पिंजरे में बंद अपनों से बिछडकर तडपते देखा है मैंने,
काफी दम घुटने लगा है मेरा अब इस हवा में ,
जहर था जितना भी इसमें सारा जहर पी लिया है मैने,
अब ईलाज मुश्किल सा लगता है और आजादी का रंग जरा फीका सा लगता है..................
प्रदीप सिंह
गांव –औच ,डाकघर –लाह्डू, तहसील – जयसिंह पुर, जिला – काँगड़ा , हिमाचल प्रदेश : 8894155669
Email: rana.pradeep83@gmail.com
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