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मारे इर्द-गिर्द लाखों घटनाएँ रोज घटती हैं और अगर हम उनको किसी के साथ न बांटें तो ये हमारे अंदर घुटन पैदा करती हैं ,आज मैनें यह सोचा की
क्यों न अपने अंदर पैदा होने बाली इस घुटन को
बाहर निकालूं और कुछ लिखूं ताकि आने बाला कल ये जान सके की सच क्या है ................

मंगलवार, 22 अप्रैल 2014

सुबह होने तक का इंतज़ार …………

सुबह होने तक का इंतज़ार   …………

 रात के बाद सुबह आती है यह सब जानते हैं लेकिन बो रात इतनी लम्बी थी की सुबह होने का नाम नहीं ले रही थी यह बात तब की है  जब में आठवीं में पढ़ा  करता था क्रिकेट का इतना बुखार था की  पूरा सप्ताह रविवार के इंतज़ार में ही गुज़र जाता था और खास कर जब परीक्षा नजदीक आती तो यह बुखार और भी  तेज हो जाता था हालाँकि टीम में हमारा नाम नहीं आता था और जब गेंद नाले में चली जाती तो हमें दौड़ा दिया जाता और हम भी फ़ट से गेंद के पीछे भाग जाते वो इसलिए की बाद में दो  गेंदे खेलने को मिलती थी यह बात  है जाडे के दिनों की जब पहली बार हमने लोहड़ी मांगकर बेट बॉल  खरीदा था यह कह सकते हैं की हमने पहली बार इसे देखा था इससे पहले हम लकड़ी के फट्टे  से ही खेला  करते थे और कई बार हमारी टांगे और हाथ टूटे थे मेरी लालसा बल्ले को छूने के लिए   बढ़ती  जा रही थी जिस जिस के पास बल्ला जा रहा था बो उसे छोड़ने का नाम नहीं ले रहा था आखिरकार बल्ला मेरे हाथों में आया और मुझे बहुत अच्छा लगा ऐसा लगा जैसे गर्मी के बाद   बारिश होने पर मोर पंख फैला कर  नाचने लगता है मेरा हाल भी  कुछ ऐसा ही था, उन दिनों सचिन तेंदुलकर क्रिकेट की दुनिया में सर्वश्रेष्ठ खिलाडी मने जाते थे और जब भारत का मैच होता था तो सिर्फ सचिन की बल्लेबाज़ी देखने के लिए ही मैच देखा जाता था  सचिन आउट हो जाते तो टीवी बंद और बहुत बुरा बुरा सा लगता था घर बाले सोचते की आज बच्चों को छुट्टी है तो   ढेर सारा काम हमारे लिए पहले से ही करने के लिए  तैयार रहता जबकि हमारी योजना पहले से ही मैच खेलने की बनी रहती थी और काम तो बाद में भी हो  जाता मगर एक भी खिलाडी मैच में नहीं पहुँचता तो अगली बार उसका नम्बर नहीं पड़ता था , कई बार घरबलों से मार खाई रातें बाहर काटनी पड़ीं पर क्रिकेट नहीं  बंद किया , आखिरकार बो दिन आ ही  जब मुझे बड़ी टीम में खेलने का मौका मिला क्यूंकि एक खिलाडी उस दिन बीमार था हर रात की तरह हम सब  खाना खा कर सोने चले गए उस रात आस्मां में कुछ बादल से थे और मुझे पूरी रात नींद नहीं आई सारी रात में बार बार उठकर आस्मां की तरफ देखता और भगवन से आस्मां साफ़ होने की गुज़ारिश करता, अंततः काफी लम्बी रात के बाद सुबह हुई और सभी काम जल्दी जल्दी करके मैच खेलने के लिए मैदान में  पहुँच गए सभी खिलाडी कुछ डरे थे क्यूंकि जिस टीम के साथ हमारा मैच था वो कभी हारी नहीं थी और हम कभी जीते नहीं थे यह बात मुझे अंदर ही अंदर कचोट रही थी आखिरकार टॉस हुआ और हम हार गए अब हमने पहले गेंदबाज़ी करनी थी बिरोधी टीम ने नौ ओवर में छपन रन बना लिए थे और आखरी  ओवर मुझे दे दिया मेने तेज़ गेंदबाज़ी शुरू कर दी और न गेंद बल्लेबाज़ के बल्ले को छुए और न ही हमारे कीपर के हाथ में आए और इस तरह बहुत रन चले गए और सभी खिलाडी मुझको डांटने लगे बिरोधी टीम ने दस ओवरों में 72 रन बना दिए लक्ष्य बहुत बड़ा था और हमारे पहले बल्लेबाज़ भी कुछ खास रन नहीं बना सके और 20 रन पर 2  विकेट चले गए इसी तरह अंतिम ओवर की 4 गेंद पर हमारा नौवां  विकेट भी  गिर गया और बिरोधी टीम बहुत खुश थी की अब हम जीत ही जायेंगे और इस तरह फिर मेरे हिसे बोही दो गेंदे  आईं और मुझे याद था की मैं किस तरह मैच खत्म होने के बाद दो गेंदों का इंतज़ार करता रहता था और किसी भी गेंद को  मारे बगैर नहीं  छोड़ता था , और उस दिन हमने दो गेंदों में 4  रन बनाने थे मेने बल्ला  पकड़ा और जैसे ही गेंदबाज ने गेंद की मैंने जोर से बल्ला घुमाया लेकिन गेंद खाली चली  गई और अब तो  यह लगने लगा की मैच फिर से हाथों से गया, मैच की अंतिम गेंद करने के लिए गेंदबाज तेजी से भागता हुआ आया और बॉल जोर से मेरी तरफ फेंक दी  मैने फिर से बल्ला जोर से घुमाया और गेंद नाले में चली गई और अंपायर ने छका दे दिया और इस तरह हम पहली बार मैच जीत गए और मेरी टीम में जगह पक्की हो गई, सभी ने मुझे ख़ुशी से ऐसे जकड लिया और  मैने जोर से चिल्लाकर कहा मुझे छोड़ दो मेरा दम  घुट रहा है ऐसा सुनते ही उन्होंने मुझे कंधे पर उठा  लिया और पुरे मैदान में घूमने लगे और उसके बाद आज तक हमारे गांब की टीम का दबदबा कायम है

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