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मारे इर्द-गिर्द लाखों घटनाएँ रोज घटती हैं और अगर हम उनको किसी के साथ न बांटें तो ये हमारे अंदर घुटन पैदा करती हैं ,आज मैनें यह सोचा की
क्यों न अपने अंदर पैदा होने बाली इस घुटन को
बाहर निकालूं और कुछ लिखूं ताकि आने बाला कल ये जान सके की सच क्या है ................

रविवार, 15 जुलाई 2012

अनजान रिश्ता .....................................


मैं अक्षर बचपन में अपने रिश्तेदारों के यहाँ जाता रहता था,
सामने एक मकान था जो हमेशा बंद रहता था ,
 और ज्यादातर  दिन में एकबार सिर्फ सुबह ही खुलता था,
एक  बुढ़िया हर रोज बांस से बनी हुई एक  टोकरी में
 चावल के दाने भरकर बाहर निकलती
और दानों को आँगन में बिखेर देती थी ,
कुछ चिड़ियाँ जो पहले ही दरवाजा खुलने के इन्तजार में बाहर होती
 दाने जमीन पर गिरते ही उनपर टूट पड़ती ,
 दाना चुगते वे आपस में झगडती
यह देखकर बुढ़िया उन्हें डांटने लग जाती थी ,
बुढ़िया को चिड़ियों से इस तरह लड़ते देख
मुझे ऐसा लगा शायद बुढ़िया पागल होगी
जो चिड़ियों से लड़ रही है ,
उस रोज सुबह चिड़ियों के कोलाहल के साथ मेरी नींद टूटी ,
खिड़की खोलकर देखा तो दरवाजा बंद था
और चिड़ियाँ ने मानो जैसे बाहर हंगामा खड़ा कर दिया था ,
काफी सुबह हो चुकी थी मगर दरवाजा अब भी बंद था ,
गाँव के कुछ लोग  शोर सुनकर बहाँ  पहुंचे ,
जब दरवाजा खोल कर देखा तो बुढ़िया मर चुकी थी ,
मैं भी अपने रिश्तेदार के साथ वहां गया अन्दर जाके जब देखा
तो ऐसा लगा मानो बुढ़िया सीने से तस्वीर लगाये
गहरी नींद में चारपाई पर सोई हो ,
मैंने बड़ी मुस्किल से तस्वीर को निकाला और मेज़ पर रख दिया ,
इसे  देख कर लगा की वह शायद उसके परिवार की थी ,
 पूछने पर पता चला की कुछ साल पहले एक बम्ब हादसे में
 इसका पूरा पारिबार मर गया था ,
मुझे यह जान कर बहुत दुःख हुआ ,
एक चिड़िया उड़कर चारपाई के कभी इस  तरफ
 तो कभी उस तरफ  बेठ  रही थी ऐसा लग रहा था
 जैसे मानो कि  वह उसे उठाने की कोशिस कर रही थी ,
मैंने कोने में पड़ी चावल की टोकरी उठाई
और चावल के कुछ दाने बाहर आंगन में बिखेर दिए ,
कुछ देर बाद मैंने जब देखा तो चिड़ियाँ जा चुकी थी
और दाने अब भी जमीन पर बिखरे हुए पड़े थे ,
मैं अब भी अक्षर वहां जाता हूँ
और इस इंतज़ार में चावल की टोकरी लेके हर सुबह बेठे रहता हूँ
 क़ि एक दिन फिर चिड़ियाँ मुडके आएँगी ..................................................

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