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मारे इर्द-गिर्द लाखों घटनाएँ रोज घटती हैं और अगर हम उनको किसी के साथ न बांटें तो ये हमारे अंदर घुटन पैदा करती हैं ,आज मैनें यह सोचा की
क्यों न अपने अंदर पैदा होने बाली इस घुटन को
बाहर निकालूं और कुछ लिखूं ताकि आने बाला कल ये जान सके की सच क्या है ................

रविवार, 19 फ़रवरी 2012

जरूरतें और ख्वाहिशें ?


 जिन्दगी मिली तो जरूरतें भी मिली ,
और जरूरतें मिली तो ख्वाहिशें भी ,

जरूरतों को पूरा करूं तो ख्वाहिशें दम तोड़ देती हैं ,
और ख्वाहिशों को पूरा करूँ तो जरूरतें दम तोड़ देती हैं ,

दोनों को पूरा करने के चक्कर में जिंदगी गुज़र जाती है ,
न ज़रुरत पूरी होती है न ख्वाहिश पूरी होती है ,


जिंदगी की भीड़ में युहीं गुम हो जाता हूँ ,
ख्वाहिशों और जरूरतों में फर्क भूल जाता हूँ ,

और हाँ अगर जेब में पैसा है तो दुश्मन भी अपना ,
बरना गली का कुत्ता भी देखकर भोंकना शुरू हो जाता है..........................




                                                                    प्रदीप सिंह (एच . पी. यू . ) शिमला -समर हिल I
   

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