महज़ दीवारें खड़ी करने से घर नहीं बनता ,
आँखों से आंसू बहाने से दर्द नहीं रुकता ,
अगर दफ़न हो जाता राज -ए-कतल ,
तो हर कातिल बच जाता ,
आवाज़ दवाने से इन्कलाब नहीं रुकता ,
और हालात बदलते हैं जब मेहनतकश इकठ्ठा होते हैं ,
रंग लाल क्रांति का प्रतीक यूँ ही नहीं होता , ----------------प्रदीप सिंह (एच. पी. यू. ) शिमला I
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