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मारे इर्द-गिर्द लाखों घटनाएँ रोज घटती हैं और अगर हम उनको किसी के साथ न बांटें तो ये हमारे अंदर घुटन पैदा करती हैं ,आज मैनें यह सोचा की
क्यों न अपने अंदर पैदा होने बाली इस घुटन को
बाहर निकालूं और कुछ लिखूं ताकि आने बाला कल ये जान सके की सच क्या है ................

सोमवार, 12 दिसंबर 2011

लाल रंग


महज़ दीवारें खड़ी करने से घर नहीं बनता ,  
आँखों से आंसू बहाने से दर्द नहीं रुकता ,
अगर दफ़न हो जाता राज -ए-कतल ,
तो हर कातिल बच जाता , 
आवाज़ दवाने से इन्कलाब  नहीं रुकता ,
और हालात बदलते हैं जब मेहनतकश इकठ्ठा होते  हैं ,
रंग लाल क्रांति का प्रतीक यूँ ही नहीं होता ,

                                                      

                                                  ----------------प्रदीप सिंह (एच. पी. यू. ) शिमला I 



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