वक़्त के हाथों से लम्हों को चुरा लाया हूँ ,
मौत से लड़कर जिंदगी को जीत लाया हूँ
तूफानों को अक्सर तबाही करते देखा होगा तुमने ,
आज मैं तूफानों को फनाह करके आया हूँ,
अब करना हिफाजत इस घर(संसार ) की तुम ,
दरवाजों को खुला ही छोड़ आया हूँ मैं ,
लड़ी है जंग इस बार भले ही अकेले मैंने ,
पर लोगों को लड़ने का हुनर सीखा आया हूँ मैं
यह शरीर रहे या न रहे कल दिन को
पर लोगों में एक सोच पैदा कर आया हूँ मैं
मुझे माफ़ करना ए दुनिया बनाने बाले
बस यह गुनाह कर आया हूँ मैं
मुझे माफ़ करना ए दुनिया बनाने बाले
बस इक छोटा सा इन्कलाब पैदा कर आया हूँ मैं
बस इतना सा गुनाह कर आया हूँ मैं ................................
.....................प्रदीप सिंह ( एच .पी. यू ) शिमला -समर हिल
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