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मारे इर्द-गिर्द लाखों घटनाएँ रोज घटती हैं और अगर हम उनको किसी के साथ न बांटें तो ये हमारे अंदर घुटन पैदा करती हैं ,आज मैनें यह सोचा की
क्यों न अपने अंदर पैदा होने बाली इस घुटन को
बाहर निकालूं और कुछ लिखूं ताकि आने बाला कल ये जान सके की सच क्या है ................

शनिवार, 5 नवंबर 2011

बस इतना सा गुनाह कर आया हूँ मैं......................

 

वक़्त के हाथों से लम्हों को चुरा लाया हूँ ,
मौत से लड़कर जिंदगी को जीत लाया हूँ
तूफानों को अक्सर  तबाही करते देखा होगा तुमने ,
आज मैं तूफानों को फनाह करके आया हूँ,
अब करना हिफाजत इस घर(संसार ) की तुम ,
दरवाजों को  खुला ही छोड़ आया हूँ मैं  ,
लड़ी है जंग इस बार भले ही अकेले मैंने   ,
पर लोगों को लड़ने का हुनर  सीखा आया हूँ मैं
यह शरीर रहे या न रहे कल दिन को 
पर लोगों में एक  सोच पैदा कर आया हूँ मैं
मुझे माफ़ करना ए दुनिया बनाने बाले 
 बस यह गुनाह कर आया हूँ मैं 
मुझे माफ़ करना ए दुनिया बनाने बाले 
बस इक छोटा सा इन्कलाब पैदा कर आया हूँ मैं   
             बस इतना सा गुनाह कर आया हूँ मैं ................................


                                               .....................प्रदीप सिंह ( एच .पी. यू ) शिमला -समर हिल







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