डूब गया था सूरज पर रौशनी अब भी बाकि रही, बुझ चुकी थी चिता पर आग अब भी बाकि रही |
खाक हो चूका था शारीर पर जान अब भी बाकि रही ,हो गई थी सुबह पर नींद अब भी बाकी रही |
गिरा दिया मकान मेरा उस दिन मेरे चाहने बालों ने , टूट गई थी दीवारें पर छत अब भी बाकि रही |
बाढ़ ले गई बहाकर सब कुछ मेरा, बस मैं जिंदा रहा लाश मेरी तेरती रही |
टूट चुके थे वो सब रिश्ते , कट चुकी थी पतंग पर वो डोर, वो उड़ान अब भी बाकि रही |
चले गए हैं वो छोड़ कर हमें , काफी वक्त गुज़र गया पर याद अब भी सीने में बाकि रही |
भर गया था वो घाव ,वो चोट पर वो दर्द , वो तड़प,अब भी सीने में बाकि रही |
यूँ तो सुख गए थे वो नदी , नाले ,झरने और सब पानी के समंदर पर वो प्यास,वो लहर अब भी बाकि रही |
उजड़ गया था सारा गुलिस्तान ,मुरझा गए थे वो सारे फूल पर वो खुशवू ,वो कलि अब भी बाकि रही|
मीलों रास्ता तय कर दिया नंगे पाँव चल कर हमने , पर वो दुरी ,वो मंजिल अब भी बाकि रही |
यूँ तो मिटा दिया था उसकी हर एक चीज़ को हमने पर वो याद ,वो निशानी अब भी सीने में बाकि रही |
आएगे लौटकर वो, बैठे हैं आज भी उसी जगह पर हम ,सदियाँ गुज़र गई पर आस अब भी बाकि रही |
आ जाओ लौटकर यह आँखें अब कहती हैं , जो रहती नहीं थी एक पल भी आपको देखे बगैर ,
उन आँखों ने राह देखते सदियाँ गुजारी हैं ,बस आजाओ लौटकर तुम एक बार यही आँखें कहती हैं
बस आ जाओ लौटकर एकबार तुम यही आँखें कहती हैं...................................................
...................................................प्रदीप सिंह (एच . पी . यू .)
बहुत सुन्दर...
जवाब देंहटाएंexcellent expression.
जवाब देंहटाएंशानदार प्रयास बधाई और शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएं-लेखक (डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश') : समाज एवं प्रशासन में व्याप्त नाइंसाफी, भेदभाव, शोषण, भ्रष्टाचार, अत्याचार और गैर-बराबरी आदि के विरुद्ध 1993 में स्थापित एवं 1994 से राष्ट्रीय स्तर पर दिल्ली से पंजीबद्ध राष्ट्रीय संगठन-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान- (बास) के मुख्य संस्थापक एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। जिसमें 05 अक्टूबर, 2010 तक, 4542 रजिस्टर्ड आजीवन कार्यकर्ता राजस्थान के सभी जिलों एवं दिल्ली सहित देश के 17 राज्यों में सेवारत हैं। फोन नं. 0141-2222225 (सायं 7 से 8 बजे), मो. नं. 098285-02666.
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