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मारे इर्द-गिर्द लाखों घटनाएँ रोज घटती हैं और अगर हम उनको किसी के साथ न बांटें तो ये हमारे अंदर घुटन पैदा करती हैं ,आज मैनें यह सोचा की
क्यों न अपने अंदर पैदा होने बाली इस घुटन को
बाहर निकालूं और कुछ लिखूं ताकि आने बाला कल ये जान सके की सच क्या है ................

गुरुवार, 21 अक्तूबर 2010

देखा होगा तुमने गरीब को पर उसकी गरीबी नहीं देखी............



 देखा होगा तुमने गरीब को पर उसकी गरीबी नहीं देखी,
 बचपन गुजरता है जिसका काँटों में वो जवानी नहीं देखी |
            देखा होगा तुमने भंबरे को मंडराते हुए ,पर
फूल से मिलने की उसकी तड़प नहीं देखी,
       देखा है तुमने तो सिर्फ पतंगे को जलते हुए देखा है
  लौ के लिए उसकी महोब्बत नहीं देखी |
             देखा होगा तुमने गरीब को पर उसकी गरीबी नहीं देखी............
देखा होगा तुमने  लहलहाती फसलों को
पर जो खून बनकर बहती है वो मेहनत नहीं देखी,
            देखी है तो सिर्फ तुमने रोटी देखी है ,
जो पैदा करता है इसको उसकी भूख नहीं देखी |
       देखा होगा तुमने गरीब को पर उसकी गरीबी नहीं देखी...........
देखा होगा तुमने गली मुहल्ले में तमाशा करते हुए बच्चों को
पर उनका बचपन ,उनकी मासूमियत नहीं देखी ,
देखा है तो बस पेड़ों पर लटकती लाशों को देखा है
उनकी घुटन , उनकी मजबूरी नहीं देखी |
                देखा होगा तुमने गरीब को पर गरीबी नहीं देखी............
देखा होगा तुमने कोठे पर नाचती हुई तवायफों को
पर उनकी बेबसी ,उनकी लाचारी नहीं देखी ,
देखा है तो सिर्फ तुमने लाश को कांधा देते हुए लोगों को देखा है ,
पर उस नुक्कड़ पर पड़ी मेरी लाश नहीं देखी |
                 देखा होगा तुमने गरीब को पर उसकी गरीबी नहीं देखी............

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