रोशन करे जो सबके घरों को ऐसी मशाल हमने जलाई है ,
ठोकर मारी है हमने उस शीशे के महल को ,झोंपड़ी हमने उस बस्ती में बनाई है ,
दुश्मन समझते हैं हमको हमारे चाहने बाले ,वो नहीं जानते की हम मोम हैं ,
यूँ तो जीते हैं सब अपने लिए ,जो दूसरों के लिए जिए वो ही तो कामरेड है ,
यूँ तो मिल जायेंगे जखम पर मरहम लगाने बाले बहुत ,
पर जो दिल पर मरहम लगाये वो दोस्त कहाँ मिलता है,
सालों हो गए हमे आज़ाद हुए पर आज़ाद कहाँ मिलता है
इस शब्द पर न जाना , इस में तो दुनिया समाई है ,
जिसमे न कोई जाति है , न कोई धर्म है ,
बस एक इंसानों की दुनिया बसाई है ,
हाँ में एक कामरेड हूँ यह एक सचाई है .......................................
प्रदीप सिंह (एच . पी. यू. )
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