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मारे इर्द-गिर्द लाखों घटनाएँ रोज घटती हैं और अगर हम उनको किसी के साथ न बांटें तो ये हमारे अंदर घुटन पैदा करती हैं ,आज मैनें यह सोचा की
क्यों न अपने अंदर पैदा होने बाली इस घुटन को
बाहर निकालूं और कुछ लिखूं ताकि आने बाला कल ये जान सके की सच क्या है ................

शनिवार, 18 सितंबर 2010

हाँ मैं कामरेड हूँ यह सचाई है ..................................

रोशन करे जो सबके घरों को ऐसी मशाल हमने जलाई है ,
ठोकर मारी है हमने उस शीशे के महल को ,झोंपड़ी हमने उस बस्ती में बनाई है ,
              दुश्मन समझते हैं हमको हमारे चाहने बाले ,वो नहीं जानते की हम मोम हैं ,
              यूँ तो जीते हैं सब अपने लिए ,जो दूसरों के लिए जिए वो ही तो कामरेड है ,
यूँ तो मिल जायेंगे जखम पर मरहम लगाने बाले बहुत ,
पर जो दिल पर मरहम लगाये वो दोस्त कहाँ मिलता है,
           सालों हो गए हमे आज़ाद हुए पर आज़ाद कहाँ मिलता है
 इस शब्द पर न जाना , इस में तो दुनिया समाई है ,
            जिसमे न कोई जाति है , न कोई धर्म है ,
                                        बस एक इंसानों की दुनिया बसाई है ,
                      हाँ में एक कामरेड हूँ यह एक  सचाई है .......................................
                                                                               प्रदीप सिंह (एच . पी. यू. )

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