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मारे इर्द-गिर्द लाखों घटनाएँ रोज घटती हैं और अगर हम उनको किसी के साथ न बांटें तो ये हमारे अंदर घुटन पैदा करती हैं ,आज मैनें यह सोचा की
क्यों न अपने अंदर पैदा होने बाली इस घुटन को
बाहर निकालूं और कुछ लिखूं ताकि आने बाला कल ये जान सके की सच क्या है ................

शनिवार, 4 सितंबर 2010

हर मौसम का अपना मिज़ाज होता है

हर मौसम का अपना मिज़ाज होता है हर चेहरे के पीछे एक राज होता है,
तुम क्यों बेठे हो चेहरा दुपते से छुपाए आखिर चाँद मैं भी तो दाग होता,
बाग़ मैं खिलते हैं अनेकों फूल ,पर उनमें से एक फूल लाजबाब होता है,
यूँ तो मंडराते हैं भंवरे फूलों पर कई , पर मर मिटे अपनी चाहत के लिए ऐसा लाखों मैं एक होता है,
हर मौसम का अपना मिजाज़ होता है , हर ख़ुशी पर चेहरे का रंग कुछ खास होता है
हो भले ही शरीर से आदमी कितना ही बुडा पर होंसलों मैं जवानी का जोश होता है ,
हर मौसम का अपना ही मिजाज़ होता है --------------------

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