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मारे इर्द-गिर्द लाखों घटनाएँ रोज घटती हैं और अगर हम उनको किसी के साथ न बांटें तो ये हमारे अंदर घुटन पैदा करती हैं ,आज मैनें यह सोचा की
क्यों न अपने अंदर पैदा होने बाली इस घुटन को
बाहर निकालूं और कुछ लिखूं ताकि आने बाला कल ये जान सके की सच क्या है ................

शनिवार, 4 सितंबर 2010

ज़िन्दगी इक संघर्ष

लगाकर आग खुद वो घर को , आग बुझाने का बहाना करने लगे , लगाकर कारखाने गुलिस्तान में, फूल कागज़ के आँगन में उगाने लगे , बह गए वो घर वो मकान, अब हर सहर ,हर गली वेगाने लगने लगे , पहले खुद ही दिए ज़ख़्म हज़ार हमको , अब उनमें मरहम लगाने लगे , तुम यह न सोचना की हम अकेले रहेंगे , हमारे बाद तो हमारी चिताओं पैर मैले लगेंगे , अगर इतना ही आसान होता किसी को भूल जाना ,तो सब भूल जाते ,फिर हमे भूलने के लिए तो तुम्हें जमाने लगेंगे

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