भले मकां तुम पत्थर से चुनबा लो ,रिश्तों को जो पक्का करे वो सीमेंट कहाँ से लाओगे,
खरीद सकते हो तुम धन दौलत से ख़ुशी भले ही , मगर क्या खुशहाली खरीद पाओगे ,
लगा लो कारखाने चाहे कितने ही तुम अपने आंगन में, पर मशीन जो चलाये वो हाथ कहाँ से लाओगे ,
खरीद सकते हो तुम धन दौलत से ख़ुशी भले ही , मगर क्या खुशहाली खरीद पाओगे ,
बना लो चाहे तालाब, लगा लो नल कितने ही घर में , मगर सूख गए अगर नदी नाले और दरिया तो पानी कहाँ से लाओगे ,
खरीद सकते हो तुम धन दौलत से ख़ुशी भले ही , मगर क्या खुशहाली खरीद पाओगे ,
लगा लो घर में फूल कागज़ के कितने ही चाहे , लेकिन वो सुगंध , वो भंब्रे कहाँ से लाओगे,
खरीद सकते हो तुम धन दौलत से ख़ुशी भले ही , मगर क्या खुशहाली खरीद पाओगे ,
हंसो चाहे कितना ही तुम खेतों को उजाड़ कर हमारे , जब न रहेंगे खेत तो अनाज कहाँ से लाओगे.
खरीद सकते हो तुम धन दौलत से ख़ुशी भले ही , मगर क्या खुशहाली खरीद पाओगे....................
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