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मारे इर्द-गिर्द लाखों घटनाएँ रोज घटती हैं और अगर हम उनको किसी के साथ न बांटें तो ये हमारे अंदर घुटन पैदा करती हैं ,आज मैनें यह सोचा की
क्यों न अपने अंदर पैदा होने बाली इस घुटन को
बाहर निकालूं और कुछ लिखूं ताकि आने बाला कल ये जान सके की सच क्या है ................

गुरुवार, 16 सितंबर 2010

खुशहाली कहाँ से लाओगे........................................

भले मकां तुम पत्थर से चुनबा लो ,रिश्तों को जो पक्का करे वो सीमेंट कहाँ से लाओगे,
खरीद सकते हो तुम धन दौलत से ख़ुशी भले ही , मगर क्या खुशहाली खरीद पाओगे ,
              लगा लो कारखाने चाहे कितने ही तुम अपने आंगन में, पर मशीन जो चलाये वो हाथ कहाँ से लाओगे ,
              खरीद सकते हो तुम धन दौलत से ख़ुशी भले ही , मगर क्या खुशहाली खरीद पाओगे ,
बना लो चाहे तालाब, लगा लो नल कितने ही घर में , मगर सूख गए अगर नदी नाले और दरिया तो पानी कहाँ से लाओगे ,
 खरीद सकते हो तुम धन दौलत से ख़ुशी भले ही , मगर क्या खुशहाली खरीद पाओगे ,
                       लगा लो घर में फूल कागज़ के कितने ही चाहे , लेकिन वो सुगंध , वो भंब्रे कहाँ से लाओगे,
                     खरीद सकते हो तुम धन दौलत से ख़ुशी भले ही , मगर क्या खुशहाली खरीद पाओगे ,
हंसो चाहे कितना ही तुम खेतों को उजाड़ कर हमारे , जब न रहेंगे खेत तो अनाज कहाँ से लाओगे.
खरीद सकते हो तुम धन दौलत से ख़ुशी भले ही , मगर क्या खुशहाली खरीद पाओगे....................

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