All Rights are Reserved


मारे इर्द-गिर्द लाखों घटनाएँ रोज घटती हैं और अगर हम उनको किसी के साथ न बांटें तो ये हमारे अंदर घुटन पैदा करती हैं ,आज मैनें यह सोचा की
क्यों न अपने अंदर पैदा होने बाली इस घुटन को
बाहर निकालूं और कुछ लिखूं ताकि आने बाला कल ये जान सके की सच क्या है ................

गुरुवार, 10 नवंबर 2016

ख़वाब में ही सही मगर तू फिर से जिन्दा हो जाए,

सोचता हूँ कि मैं भी अपनी आँखें बंद कर लूं
शायद कोई करिश्मा हो जाये

ख़वाब में ही सही  मगर तू फिर से जिन्दा हो जाए,
उठाकर बाहों में तुझको, 
तेरी करीबीओं को समझ पाऊँ,
तेरी आँखों में डूबकर,
तेरे आंसुओं की गहराई समझ पाऊँ,
बदल दूं लकीरें तेरे हाथों की, 
अगर ऐसा कुछ हो जाये,
तेरे अधूरे सपनों की तस्वीर,
मेरे दिल में छप जाये,
ख़वाब में ही सही,
मगर तू फिर से जिन्दा हो जाए..

 -----------Pradeep Singh

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें