All Rights are Reserved


मारे इर्द-गिर्द लाखों घटनाएँ रोज घटती हैं और अगर हम उनको किसी के साथ न बांटें तो ये हमारे अंदर घुटन पैदा करती हैं ,आज मैनें यह सोचा की
क्यों न अपने अंदर पैदा होने बाली इस घुटन को
बाहर निकालूं और कुछ लिखूं ताकि आने बाला कल ये जान सके की सच क्या है ................

मंगलवार, 8 नवंबर 2016

क्या खूब दिखता है अब तेरा शहर भी

कुछ  धुंधला सा तो कुछ अनजान सा लगता है अब तेरा शहर भी ,
कभी बरसता है  तो  कभी उबलता है
कुछ भीगा तो कुछ झुलसा हुआ लगता है अब तेरा शहर भी,
क्या खूब दिखता है अब तेरा शहर भी……….

चीखता है , चिल्लाता है, किसी की सुनता नहीं,
बस  बोलता ही जाता है ,
चेहरे पर हसीं तो दिल में जहर  रखता है,
सांप से भी जहरीला हो गया है  अब तेरा शहर भी,
क्या खूब दिखता है अब तेरा शहर भी…………..

काफी गुस्से में लगता है, खंज्जर उठाये,
हर किसी के पीछे दौड़ता है,
काफ़िर सा बन गया  है अब तेरा शहर भी,
क्या खूब दिखता है  अब तेरा शहर भी……

ढेर काफ़ी लगे हैं  तेरे शहर में ,
कुछ लाशों के, तो कुछ  गंदगी  के  पड़े हैं,
काफी बीमार और  लाचार  सा हो गया है, अब तेरा शहर भी,
क्या खूब दिखता है  अब तेरा शहर भी……
                                         लेखक : प्रदीप सिंह


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें