सच पूछो तो, न दवा दर्द कम करती है और न शराब,
यह तो सब बहाने हैं जिंदगी से लडने के,
कभी यह जीत जाती है, तो कभी हार,
आखिर हकीम भी क्या करे इसका इलाज़,
वो तो नव्ज़ देखता है और ढूँढता है सिर्फ घाव,
पलभर में ही आँख पत्थर हो जाती हैं और खामोश हो जाती है आव़ाज,
रूह छोड़ जाती है ज़िस्म को और मौत बनकर रह जाती है एक राज.....
फिर आती है बुदिजीविओं के साथ समाज की तीसरी आँख,
मौत के कारणों पर बहस करबाती है और खूब चमकाती है व्यापार,
न जाने कितने ही मुर्दा घरों से गुजरती है यह लाश,
पहले मोहन की फिर सोहन की और फिर हो जाती अनजान,
क्या करे यही है आज देश का हाल,
आसमान पर रहने की बात करते हैं,
मगर धरती पर अब भी दबे पड़े हैं,
“स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार”
प्रदीप सिंह राणा........................
गावं –औच , डाकघर -लाहडू, तहसील - जैसिंघपुर,
जिला -काँगड़ा हि.प्र. Mob. 980551021 Email: rana.pradeep83@gmail.com
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