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मारे इर्द-गिर्द लाखों घटनाएँ रोज घटती हैं और अगर हम उनको किसी के साथ न बांटें तो ये हमारे अंदर घुटन पैदा करती हैं ,आज मैनें यह सोचा की
क्यों न अपने अंदर पैदा होने बाली इस घुटन को
बाहर निकालूं और कुछ लिखूं ताकि आने बाला कल ये जान सके की सच क्या है ................

शनिवार, 27 जून 2015

खवाब है शायद सच हो जाए...........

सोचता हूँ की खुद से गुफ्तगुह कर लूं ,
आँखों को पत्थर और जुबान को खामोश कर लूं,
ज़माना पूछेगा जरूर मेरे आंसूओं की बजह,
सांसों को धीमा और सपनों को छोटा कर लूं,
काफी थक गया हूँ सफर में चलते चलते अब मैं,
सोचता हूँ की यहाँ रुककर खूब आराम कर लूं,
नींद नहीं है “प्रदीप”  आँखों में मेरी अब,
 मगर जागने की कोई बजह भी तो नहीं दिखती,
क्या खूब खेल खेला है जमाने ने भी मेरे साथ,
सहारा दिया मुझे वो भी मेरे मरने के बाद,
खेर कभी तो कोई पुतला जागेगा
कभी तो खामोशियों का शब्र टूटेगा
शायद उस दिन कोई तूफ़ान आये
और पत्थर आँखों से भी बरसात हो जाये,
शायद मशीने फिर इंसान बन जाएँ,
और अपने बिखरे पुर्जों को फिर जोड़ पायें,
शायद मैं  फिर जिन्दा हो जायूं,
खवाब है शायद सच हो जाए...........


प्रदीप सिंह

गांव –औच ,डाकघर –लाह्डू, तहसील – जयसिंह पुर, जिला – काँगड़ा , हिमाचल प्रदेश : 8894155669
Email: rana.pradeep83@gmail.com

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