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मारे इर्द-गिर्द लाखों घटनाएँ रोज घटती हैं और अगर हम उनको किसी के साथ न बांटें तो ये हमारे अंदर घुटन पैदा करती हैं ,आज मैनें यह सोचा की
क्यों न अपने अंदर पैदा होने बाली इस घुटन को
बाहर निकालूं और कुछ लिखूं ताकि आने बाला कल ये जान सके की सच क्या है ................

रविवार, 26 अक्तूबर 2014

मुलाकात.........

शहरो - शहरो, गलियो - गलियो का आँगन  याद आया .......

झूटा दोस्त और सचा दुश्मन याद आया ,
देख कर शहरो की रगी दिवारे अपने घर का सूना आँगन याद आया .....

मैं चहता था की मेरी खुद से ही मुलाकात हो पर आइना ही मेरे कद के बराबर न मिला.....

प्रदीप राणा

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