All Rights are Reserved


मारे इर्द-गिर्द लाखों घटनाएँ रोज घटती हैं और अगर हम उनको किसी के साथ न बांटें तो ये हमारे अंदर घुटन पैदा करती हैं ,आज मैनें यह सोचा की
क्यों न अपने अंदर पैदा होने बाली इस घुटन को
बाहर निकालूं और कुछ लिखूं ताकि आने बाला कल ये जान सके की सच क्या है ................

गुरुवार, 4 नवंबर 2010

महोबत करने बाले कम न होंगे ------------------------

महोबत करने बाले कम न होंगे मगर तेरी महफ़िल में हम न होंगे ,
लोग बजायेंगे तालियाँ जरूर पर वो हाथ हमारे न होंगे ,
 गाये जायेंगे गीत बहुत पर वो साज न होंगे ,
होगी भीड़ बहुत तुम्हारे चाहने वालों की पर उस भीड़ में हम न होंगे ,
हर जाम तुम्हारे होंठों को छूने के लिए बेताब होगा ,
नशा तुम्हारी आँखों में मेरे नाम का होगा ,
जुबान खुद गबाही देगी हमारी महोबत का ,
तेरी महफिल में भी चर्चा मेरे नाम का होगा ---------------
                                                                    प्रदीप सिंह (एच . पी.यू .)

1 टिप्पणी: